100 साल पूरे कर चुकी भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र की कहानी

आज हम सिनेमा को जिस रूप में देखते है उसे यहां तक आने में दशकों का समय लगा है। भारतीय सिनेमा के एक लम्बे दौर ने महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया है। सिनेमा की सबसे ख़ास बात यही है की इसमें कहानियों को इंटरैक्टिव तरीके से कहने का मौका मिलता है जो की दर्शको को लम्बे समय तक बांध के रखता है। इंडियन फिल्म इंडस्ट्री ने मूक फिल्मों से अपना सफर शुरू किया और आज आधुनिक टेक्नोलॉजी से लवरेज VR, Glasses-free 3D और Augmented reality जैसे फीचर के साथ फिल्में रिलीज़ हो रही है। 

लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब फिल्में बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण काम था। साथ ही फिल्में बनाने में खर्चा भी होता था जिसे वहन करना सबके बस की बात नहीं होती थी। भारत की पहली फिल्म बनाना सरल नहीं था। टेक्नोलॉजी के स्तर से लेकर कास्टिंग तक और फिर फिल्म रिलीज़ सब कुछ बहुत चुनातिपूर्ण था। इस लेख में हम भारत की पहली फिल्म के बनने की कहानी को देखेंगे और जानेंगे की कैसे उन फिल्मों ने आज की आधुनिक फिल्मों को जन्म दिया। 

फिल्में क्या होती है

भारत की पहली फिल्म के बारे में जानने से पहले ‘फिल्म क्या है’ समझ लेते हैं। दृश्य चित्रों की श्रृंखला जो किसी कहानी को बयान करती हो उन्हें फिल्में कहा जाता है। यह चलती छवियों के माध्यम से किसी अनुभव, विचार, धारणाओं या घटनाओं आदि को संप्रेषित करती है। फिल्मों को वीडियो कैमरे की मदद से शूट किया जाता है। जबकि आधुनिक समय में एनीमेशन, वीएफएक्स और उन्नत तकनीकों की सहायता से फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है। फिल्में शुरुआत से समाज का आईना मानी जाती है क्योंकि समय-समय पर फिल्मों ने अपने दौर की समस्या और घटनाओं को बखूबी दर्शाया है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा सबसे रोचक तथ्य ये है की दुनिया में सबसे अधिक फिल्में बॉलीवुड में बनाई जाती है। भारत में चलने वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को बॉलीवुड कहा जाता है। 

जबकि भारत में बॉलीवुड के अलावा भी दूसरी फिल्म इंडस्ट्री हैं जहाँ अलग-अलग भाषाओं में फिल्मों का निर्माण किया जाता है। जैसे बंगाल की सिनेमा इंडस्ट्री को टॉलीवुड कहते हैं। यहां पर बंगाली में फिल्में बनती है। इसी तरह Kollywood कहा जाने वाला तमिल सिनेमा भी बहुत पॉपुलर है। साथ ही दूसरी तरह की रीजनल फिल्म इंडस्ट्री भी कार्य करती है।

भारतीय सिनेमा का इतिहास

भारत में फिल्मों ने सामाजिक और राजनीतिक सोच को आकर देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। स्कॉटिश इंजीनियर, जॉन बेयर्ड (John Baird) ने सबसे पहले चलते हुए चित्रों को रिकॉर्ड किया था जिसने आगे चलकर वीडियो कैमरे का रूप लिया। शुरुआती तकनीक बहुत पेचीदा हुआ करती थी लेकिन समय के साथ-साथ उसमे सुधार होते गए। हालांकि जॉन बेयर्ड के बाद भी बहुत लोग आए जिन्होंने इस तकनीक को उन्नत करने में योगदान दिया। 

भारत में सिनेमा ने ब्लैक एंड वाइट से अपना सफर शुरू किया था। इन फिल्मों ने अपने ख़ास अंदाज और बेहतरीन कहानी के लिए देश दुनिया में धूम मचाई। कामयाबी के साथ 100 साल से भी अधिक समय तक राज करने वाली भारतीय फिल्म इंडस्ट्री दुनिया की कुछ सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री में से एक है। यहां हिंदी फिल्मों के अलावा रीजनल भाषाओं में बनने वाली फिल्में भी खूब धूम मचा रही है। 

भारतीय सिनेमा की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की अकेले बॉलीवुड में हर साल 1,000 से अधिक फिल्में रिलीज़ हो जाती है। 100 साल पहले भारत में जब फिल्में बनना शुरू हुई तब किसने सोचा था की आने वाले समय में रोजाना 14 मिलियन यानी एक करोड़ चालीस लाख लोग फिल्में देखने सिनेमा में जायेंगे। लेकिन आज यह वास्तविकता है। इसके अलावा ओटीटी प्लेटफार्म सिनेमा को एक नए तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं। 

भारत की सबसे पहली फिल्म

एक आदमी सपना देखता है और उसे पूरा करने की जुगत में लग जाता है। ऐसा ही एक सपना धुंदीराज गोविंद फाल्के, जो दादा साहेब फाल्के के नाम से मशहूर हैं, ने देखा था। फिल्में बनाने के उनके जुनून ने भारत को पहली फिल्म दी। 1913 में बनकर तैयार हुई ‘राजा हरिशचंद्र’ फिल्म भारत की पहली फिल्म है। इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक दादा साहेब फाल्के थे। इस ब्लैक एंड व्हाइट और मूक (बिना आवाज के) फिल्म ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी। शुरुआती दौर में बनी फिल्मों में केवल चित्र होते थे। 

उस समय ‘राजा हरिशचंद्र फिल्म’ को बनाने में 15 हजार लगे थे। साथ ही फिल्म निर्माण की कला सीखने के लिए उन्हें लंदन की भी यात्रा करनी पड़ी पड़ी। दादा साहेब फाल्के को फिल्म बनाने की प्रेरणा तब मिली जब उन्होंने The Life of Christ (1906) देखी। इस फिल्म को उन्होंने अप्रैल 1911 में देखा था तथा इसके कुछ महीने बाद ही फिल्म निर्माण की कला सीखने वो 2 हफ्ते के लिए लंदन रवाना हुए। वापिस लौटने पर उन्होंने ‘फाल्के फिल्म्स कंपनी’ बनायीं। फिल्म निर्माण के लिए जिन हार्डवेयर की जरूरत पड़ती है उसे उन्होंने इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका से मंगवाया था। इसके अलावा फाल्के ने निवेशकों को फिल्म में इन्वेस्ट करने के लिए आकर्षित करने के लिए एक लघु फिल्म Ankurachi Wadh भी बनायी। 

उस दौर में महिलाओं का किरदार भी मर्द ही औरत बनकर निभाते थे क्योंकि महिलाओं की भूमिका को प्रदर्शित करने के लिए कोई महिला नहीं मिलती थी। 3 मई, 1913 के दिन मुंबई के कोरोनेशन थिएटर में इस फिल्म की स्क्रीनिंग रखी गयी। इस तरह से भारत की पहली फिल्म बनाना सरल नहीं था। बहुत तरह की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों को ध्यान में रखा गया तब कहीं जाकर ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म अस्तित्व में आयी। 

राजा हरिश्चंद्र फिल्म की कहानी

राजा हरिश्चंद्र की कहानी बहुत प्रेरणादायी है। न्यायप्रिय राजा के लिए जरूरी है की वो हर परिस्थिति में सत्य का साथ और न्याय की रक्षा के लिए ही कार्य करे। भारत की पहली फिल्म, राजा हरिश्चंद्र में भी राजा के अनुशासन और त्याग को बखूबी दिखाया गया है। 

दरअसल, सूर्यवंशी इक्ष्वाकु वंश सतयुग के समय अयोध्या में शासन करते थे। उन्हीं के एक राजा सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र हुए जो बहुत गुणवान, पुण्य और तप, न्याय में भरोसा रखते थे। प्रजा उनका बहुत आदर करती क्योंकि वह पराक्रमी, धर्मवान, दयावान और धर्म के मार्ग पर चलने वाले राजा थे। उनका न्याय सबके लिए बराबर होता था। 

राजा हरिश्चंद्र की पत्नी का नाम शैव्या (Shaivya) था। हालांकि बहुत जगह उनका नाम तारामती भी बताया जाता है। वैसे तो राजा-रानी के पास हर तरह की सुख-सुविधा थी लेकिन कोई संतान न होना उनके लिए संताप का एक बड़ा कारण था। एक दिन उनके कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ वरुण देव की उपासना करने की सलाह देते हैं। उनकी बात मानकर, वह दोनों वरुण देव को प्रसन्न कर पुत्र का वरदान पा जाते हैं। जिसका नाम रोहित रखा जाता है। लेकिन उनकी एक शर्त यह होती है की राजा हरिश्चंद्र का पुत्र ‘रोहित’ की बलि चढ़ानी होगी। लेकिन राजा ने ऐसा करने से मना कर देते हैं। तत्पश्चात इसकी सजा के रूप में उन्हें जलोदर रोग हो जाता है। 

पिता की ऐसी हालत देखकर रोहित अपनी बलि देने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन इसी दौरान उनके कुलगुरु वशिष्ठ किसी दूसरे लड़के को खरीद लेने की सलाह देते हैं और उसकी बलि देकर रोहित को बचाने का प्रयास करते हैं। हालांकि वरुण देव बिना उस लड़के की बलि लिए हरिश्चंद्र को ठीक कर देते हैं। 

एक दिन राजा हरिश्चंद्र अपने राज्य में यज्ञ करने का निर्णय लेते है। विश्वामित्र जब राजा की उदारता और न्यायप्रियता की बातो को सुनते है तो उन्हें विश्वास नहीं होता और वो राजा की परीक्षा लेने का निश्चय करते हैं। एक दिन शिकार खेलने के दौरान राजा की मुलाकात एक ब्राह्मण से होती है। वह ब्राह्मण कोई और नहीं स्वयं विश्वामित्र होते हैं। राजा उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित करते हैं। 

एक दिन वह ब्राह्मण दरबार में आकर राजा से अचानक अपने राज्य को उन्हें दान देने के लिए कहता हैं। राजा हरिश्चंद्र (Satyawadi raja Harishchandra) अपना पूरा राज्य, धन,, वैभव, संपत्ति उस ब्राह्मण को दे देते हैं और अपनी पत्नी और बेटे रोहित के साथ महल छोड़ देते हैं। इतने में विश्वामित्र उचित दक्षिणा की भी मांग कर बैठते हैं जिसके लिए राजा मना नहीं करते और थोड़ा समय मांग के राज्य त्याग देते हैं। 

इन सब के बीच वह अपने परिवार के साथ काशी पहुंचते हैं और साथ ही वह विश्वामित्र की हर परीक्षा भी उत्तीर्ण करते जाते हैं। इसके बाद उन्हें विश्वामित्र को दक्षिणा देने की बात याद आती है और वह अपनी पत्नी और बेटे रोहित को एक ब्राह्मण यहां बेच देते हैं। प्राप्त हुए धन लेकर वह विश्वामित्र को देते हैं और अपने ऋण से छुटकारा दिलाने का आग्रह करते हैं। 

इसके उपरांत विश्वामित्र एक महान यज्ञ करने का हवाला देते हैं जिसके कारण हरिश्चंद्र को खुद को एक डोम के यहां बेचना पड़ता है। फिर वह प्राप्त धन को विश्वामित्र को दे देते हैं। तथा राजा-देवता इस कार्य के लिए उनकी खूब प्रशंसा करते हैं। चाण्डाल की गुलामी करने के दौरान हरिश्चंद्र दाह-कर्म आदि कार्यो को देखना पड़ता। 

वहीं दूसरी तरफ रानी शैव्या और रोहित ब्राह्मण के लिए दासता करते। एक दिन ब्राह्मण के लिए रोहित फूल चुनने जाता है तभी विश्वामित्र द्वारा कुपित सांप के काट लेने से उसकी मृत्यु हो जाती है। रानी शैव्या अपने पुत्र की यह हालत देखकर फूट-फूटकर रोने लग जाती है और उसका शव लेकर डोम का काम करने वाले हरिश्चंद्र के पास पहुंचती है लेकिन वह उसे पहचान नहीं पाता और उससे कर मांगने लगता है। रानी अपनी गरीबी का हवाला देकर उससे याचना करने लगती है। 

तभी रानी कहती है “में एक अनाथिनी हूँ, राजपाट था जो चला गया अब मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है।” तभी वह उसे पहचान लेते हैं और कर माफ़ी के लिए चांडाल के पास पहुंचते हैं। वही विश्वामित्र अपनी माया से लाल रक्त से शैव्या को रंग देते हैं और उस पर बाल घातिनी (अपने पुत्र का वध करने वाली) होने का आरोप लगाते हैं। 

इसी बीच हरिश्चंद्र और चण्डाल भी वहां आ पहुंचते हैं। चांडाल हरिश्चंद्र को बाल घातिनी को मारने को कहता है। जैसे ही वह उसे मारने पहुंचते हैं सब देवतागण उपस्थित हो जाते हैं। इसी बीच विश्वामित्र पूरी कहानी सुनाते है की किस तरह वह उनकी परीक्षा ले रहे थे। सभी लोग मिलकर राजा हरिश्चंद्र की प्रशंसा करते हैं और उनके पुत्र रोहित को पुनर्जीवित करके पूरा राज-पाट उन्हें वापस दे देते हैं। 

इस तरह राजा अयोध्या में वापस अपना धर्म आधारित राज्य स्थापित करते हैं तत्पश्चात राज्य को अपने पुत्र रोहित को देकर सूरपुर चले जाते हैं। यह कहानी बताती है की परिस्थित चाहे कितनी भी विकट क्यों न हो सत्य का मार्ग कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि अंत में सत्य की ही जीत होती है। 

इस तरह first full-length Indian feature film ने भारत में आगे के सिनेमा का मार्ग प्रशस्त किया। भारतीय सिनेमा को घर-घर पहुंचाने में दूरदर्शन चैनल का भी बड़ा योगदान है। हालाँकि आज के समय में फ़ोन है जिसमे लोग जब चाहे तब अपना पसंदीदा फिल्म को देख सकते हैं। लेकिन फिर भी पुरानी फिल्मों की प्रसिंगिकता आज भी बनी हुई है क्यूंकि उन्होंने ने ही आज के सिनेमा को बनाया है।

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