मानव इतिहास को समझना चाहते हैं तो चलिए भीमबेटका की गुफाओं की सैर पर |

मानवीय विकास आज जिस चरण में है वहां तक पहुंचने में इसे हज़ारों वर्ष का समय लगा। इन हज़ारों वर्ष के दौरान उसने हर तरह के दौर देखें। चाहे शुरुआती दौर में पत्थरो पर चित्रों को उकेर के अपनी बात दर्ज करनी हो या फिर  अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों का निर्माण, मानव ने हर तरह के प्रयास किये। मानव की इन्ही क्षमताओं को देखते हुए ये कहा जा सकता है की उसकी गतिविधियां सदैव से ही उलझन में डालने वाली रही है। यही वजह है की मानवीय गतिविधियां पर शोध लगातार होते रहते हैं। ताकि उसकी असली संभावनाओं का पता लगाया जा सके। भारत में मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले में है एक ऐसी संरचना है जिसे भीमबेटका की गुफाओं के नाम से जाना जाता है। 

अपनी खूबसूरत और बड़ी जबरदस्त पेंटिंग के लिए मशहूर यह जगह शुरूआती मानव के आवास के रूप में जानी जाती है। 5000 वर्ष से भी अधिक समय तक मानव ने यहां पर अपने निशान छोड़े जिनपर आज भी बहुत जोरो-शोरो शोध हो रहा है। आज हम प्राचीन भारत का इतिहास में से एक अध्याय की चर्चा करेंगे और देखेंगे की आखिर क्यों मशहूर है Ancient Bhimbetka Cave Paintings और ऐसा क्या है भीमबेटका में जो शोधकर्ताओं के लिए किसी पहेली से कम नहीं है। 

भीमबेटका की गुफाएं कहाँ हैं

भीमबेटका की गुफाएं मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। यह एक पुरातन पाषाण युगीन पुरातात्विक स्थल (Paleolithic Archaeological Site) है जो की मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 46  किलोमीटर दूर स्थित है। माना जाता है की मानव विकास का आरंभिक काल यही बीता था इसलिए यह जगह शोधार्थियों और जिज्ञासुओं के लिए बहुत महत्व रखती है। इसके साथ ही यह आवासीय पुरास्थल (residential site) भी कहा जाता है। 

भीमबेटका का नाम कैसे पड़ा

इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है माना जाता है की महाभारत के एक नायक महाबली भीम का, यह स्थान बैठने की जगह थी जिसे भीमबैठका (Bhimbaithaka) कहा जाता था। और बाद में इसी का नाम भीमबेटका पड़ गया।  महाभारत में पांडु के पांच पुत्रों में से एक महाबली भीम भी थे। इन पांचों पुत्रों को पांडव कहकर बुलाया जाता था क्योंकि वह सब महाकाव्य महाभारत में पाण्डु के पुत्र थे। 

गुफाएं विंध्याचल की पहाड़ियों में 25 वर्ग किलोमीटर में फैले है। इसके उत्तर में Betwa river तो वहीं दक्षिण में नर्मदा नदी है। जो इसकी लोकेशन को बेहद ख़ास बना देते हैं। कई जगह तो ऐसी कहानियां भी प्रचलित है की इस स्थान पर निर्वासन के दौरान (Pandava exile) पांचों पांडव ठहरे थे और यही बैठकर स्थानीय लोगों से बातचीत करते थे। 

भीमबेटका गुफाओं की खोज कैसे हुई

अब जानना महत्वपूर्ण है की भीमबेटका गुफाओं की खोज कैसे हुई क्योंकि खोज के उपरान्त ही यहां शोध कार्य आरम्भ हुआ। 1958 में मशहूर archaeologist Dr. V.S. Wakankar नागपुर के लिए अपनी ट्रेन यात्रा के दौरान यह स्थान देखते हैं तत्पश्चात इसके गुफाओ के खोज कर बैठते हैं। चूँकि वाकणकर विदेश जाने के दौरान ऐसे संरचनाओं को देख चुके थे इसलिए उन्होंने archaeologists के एक टीम को बुला लिया उनकी टीम ने अपनी खोज में पाया कि यह पहले से बहुत सारी विश्राम स्थल बने हैं। इस स्थान के साक्ष्य बहुत पीछे तक जाते हैं जिसे निचला और ऊपरी पुरापाषाण, मेसोलिथिक और मध्यकालीन काल कहा जाता है। 

भीमबेटका गुफाओं का इतिहास

भारतीय इतिहास में भीमबेटका बहुत महत्व रखते हैं क्योंकि माना जाता है की यही से मानव ने विश्राम स्थल बनाकर रहना आरम्भ किया। Bhimbetka ka itihas 8000 bc तक जाता है मतलब आज से 10000 साल पहले। इसके अलावा भीमबेटका के खास होने की है दूसरी वजह उनकी गुफाओं की दीवारों पर बेहद खास और अनोखी पेंटिंग का बना माना जाता है। 

अपने हज़ारो सालो के इतिहास मे Bhimbetka rock shelters ने बहुत सारे बदलावो को देखा है। इसकी 750 गुफाएं 10×4 किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए है जो अलग अलग काल से संबंधित चित्रों को प्रदर्शित करते हैं। यहां पर पाषाण काल से संबंधित पेंटिंग जिसकी उम्र लगभग 10000 साल बतायी जाती है देखे जा सकते हैं। इसके अलावा 5000 साल पूर्व के मध्य पाषाण काल के चित्र भी किसी रहस्य से कम नहीं है और साथ ही 2000 वर्ष पूर्व ताम्रपाषाण की पेंटिंग भी बहुत खास है। 

भीमबेटका के प्रसिद्ध होने की वजह

भीमबेटका की गुफाएं बहुत से कारणों से प्रसिद्ध है सबसे पहले तो यहां पर शुरुआती आदि मानव के निशान देखने को मिलते हैं। भारत में प्राचीन शोध के दृष्टिकोण से यह बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है क्यूंकि शैलचित्रों और शैलाश्रयों के माध्यम से प्राचीन रहस्यों से पर्दा उठाया जा सकता है। साथ ही उनके रहन-सहन और व्यवहार की रूपरेखा भी भली-भांति समझी जा सकती है। 

इसके अलावा भीमबेटका का दूसरा पहलू ये है की यहां बहुत सारे पेंटिंग हैं जो एक अविश्वसनीय और अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं।  यहां मिले कुछ मशहूर पेंटिंग में हाथी दरवाजा, आदि मानव द्वारा बनाये गए शिलाचित्र  आदि प्रमुख है। भीमबेटका रॉक पेंटिंग की विशेषता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की यहां 750 रॉक पेंटिंग हैं जिसमे से ASI द्वारा अब तक महज 15 पेंटिंग को ही चिन्हित किया गया है। और इन्ही 15 पेंटिंग को देखने पर्यटक और शोधार्थी आते हैं। 

भीमबेटका में आकर्षण केंद्र

भीमबेटका खास तौर से इतिहास के विद्यार्थियों को खूब लुभाता है लेकिन साथ ही जिज्ञासु और सामान्य लोग भी इस जगह का भ्रमण करने का मौका नहीं छोड़ते। इसके पीछे की वजह यहां मौजूद सैकड़ो प्रजाति के पेड़ और पत्थरो को माना जाता है। ऐसा ही एक पत्थर भीमबेटका रॉक शेल्टर में है जो एक कछुआ जैसे प्रतीत होता है। यह देखने पर  ऐसा लगता है मानो कोई कछुआ आराम फरमा रहा हो। यहां भी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है इसके अलावा यहां हज़ारों किस्म के पेड़ और पौधे मौजूद है जिनपर शोध और अन्वेषण चलते रहते हैं। वहीं अगर बात रॉक शटर की ऊंचाई की करें तो यह 25 से 40 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो अपने आप में एक रिसर्च का विषय बना हुआ है। 

भीमबेटका रॉक आर्ट और पेंटिंग

भीमबेटका की गुफाओं में जो पेंटिंग बने है वो हज़ारो साल पुराने है, कुछ लोग तो ऐसा भी मानते हैं की इन पेंटिंग की आयु 30,000 वर्ष है। ऐसा कहा जाता है की उस समय सब्जी के रंग और दूसरे तरह के प्राकृतिक संसाधनों के सहारे पेंटिंग को गुफा को दीवारों पर उकेरा जाता था। यह प्रक्रिया जटिल जरूर थी लेकिन इसे उस समय के लोगो ने भलीभांति अंजाम दिया जिसके कारण ही आज हम उनके बारे में चर्चा कर पाते हैं। इसका एक पक्ष ये भी माना जाता है की कालांतर में धार्मिक प्रभावों ने भीमबेटका की पेंटिंग पर गहरा प्रभाव डाला जिसमे हिन्दू और बौद्ध विचार प्रमुख है। और धार्मिक पेंटिंग अस्तित्व में आयी। 

उनकी पेंटिंग बहुत ख़ास होती थी जिसमे प्रमुख था आश्रय स्थलों की अंदुरुनी और बाहरी दीवारों पर तस्वीरें बनाकर संदेशो को सम्प्रेषित करना। उनकी पेंटिंग को अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है जो निम्नलिखित है। 

  1. शुरुआती दौर में वह लाल और गहरे हरे रंग के मिश्रण से जानवरों के छायाचित्र बनाते थे। 
  2. अगला जो पीरियड आया उसमें लोग जानवरों के चित्रों के साथ साथ अस्त्र-शस्त्र भी बनाने लगे। जिसके बाद पक्षी, वाद्य यंत्र, आदि की कलाकृति भी बनाई गयी। इस काल को मध्य पाषाण काल कहा जाता है। 
  3. इसके बाद खुदाई के उपरांत कुछ ऐसे भी साक्ष्य मिले जिनसे पता चलता है की उस समय के लोग कृषि यंत्रों को भी गुफा की दीवारों पर बनाने लगे और यह काल था ताम्र युग। 
  4. इस समय तक आते-आते लोग थोड़ा संगठित होकर रहना सीख गए थे और धार्मिक मान्यताओ के आधार पर अपने विचारो और व्यवहारों को नियंत्रित करते थे। इस समय के लोग खुद को सजाने के लिए लाल, सफ़ेद और पीले का अत्यधिक इस्तेमाल करते थे। 
  5. अपनी कला में भोंडापन और पतन को दर्शाने के लिए इस समय के लोगों ने पेंटिंग का सहारा लिया। गुफा में रहने वाले लोग कोयले, हेमटिट, और मैंगनीज का इस्तेमाल करते थे। 

भीमबेटका – यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

भीमबेटका की अद्भुत ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए अगस्त 1999 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने इसे राष्ट्रीय महत्व स्थल घोषित किया। जिसके बाद वैश्विक धरोहरों वाली संस्था UNESCO ने भी मुहर लगाई और साल 2003 में भीमबेटका को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल कर लिया। यूनेस्को के कार्य में वैश्विक शांति को बढ़ावा देना है, जिसके लिए यह विज्ञान, संचार, प्रकृति माध्यम का सहारा लेता है। 

संपूर्ण रूप में

भारतीय उपमहाद्वीप में एक से बढ़कर एक प्राकृतिक और मानवीय संरचनाये मौजूद है जिनपर लगातार शोध और अन्वेषण होते रहते हैं, bhimbetka cave paintings भी उन्ही धरोहरों में से एक है जिनपर शोध कार्य निरंतर चल रहे हैं। प्राचीन और शुरुआती मानव के निशानों की खोज करना काफी कठिन कार्य है लेकिन भीमबेटका की गुफाओं के माध्यम से इस रहस्य को समझा जा सकता है। हालाँकि यह जगह सिर्फ शोधार्थी के लिए ही नहीं है बल्कि सामान्य जिज्ञासु लोग भी यहां की सैर करके हज़ारो साल पुरानी तस्वीरो के गवाह बन सकते हैं। तो अगर आप घूमने का मन बना रहे हैं और किसी ऐतिहासिक जगह की तलाश में हैं तो bhimbetka rock shelters आपकी राह देख रही है। एक बार जरूर जाइये। 

उम्मीद करते हैं इस लेख से आपको bhimbetka kya hai in hindi के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल गयी और साथ ही आप इसके विभिन्न पक्षों से भी रूबरू हो गए होंगे। इस विषय पर अपनी राय जरूर कमेंट कीजिये। 

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