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कबीर का जन्म – Birth of Kabir
कबीर के जन्म से जुडी बहुत सारी कहानिया है, जिसमे से एक जो सबसे मशहूर है वो है की, वो कमल के पुष्प पर काशी में लहरतारा तालाब के किनारे एक जुलाहे दंपत्ति को रखे मिले जहा से उन दोनों ने उनको गोद ले कर उनका लालन-पालन किया। कबीर ने अपनी शिक्षाओं को काशी से देना प्रारम्भ किया जिसके बाद उनकी शिक्षाएं दूर दूर तक मशहूर हुई।
अडंबरो और रूढ़िवादीता पर चोट – Critic of arrogance and orthodoxy
कबीर ने उस दौर में अपनी बात को जन-जन तक पहुंचाया जिस दौर में शायद विचारो को अभिव्यक्त करने की उतनी स्वंतंत्र नहीं थी। कबीर ने अडंबरो और रूढ़िवादी विचारो को अपने विषय के मूल में रखा जहाँ उन्होंने बताया की जिस प्रकार से समाज को एक प्राकृतिक धारा के विपरीत मोड़ने की कोशिश की जा रही है वो सही नहीं है, इसमें सिर्फ कुछ विशेष लोग ही अपना हित साध रहे है। कबीर ने समाज में व्याप्त असामनता और सामाजिक बुराइओं के खिलाफ खूब बोला। कबीर के जाने के बाद बहुत कुछ बदला, लेकिन नहीं बदली तो वो थी समाज के सोचने की दिशा। कबीर के जाने के इतने सालो बाद भी maghar से जुडी कहानिया आज भी बहुत प्रचलित है। क्या सच में मगहर में देह त्यागने से नरक का द्वार खुलता है ? कहानिया बहुत है लेकिन उसमे कितना सच है और कितना फ़साना है ?
मगहर की कहानी – Story of Maghar Sant Kabir Das
मगहर उत्तर प्रदेश राज्य में संत कबीर नगर जिले का एक कस्बा और नगर पंचायत है। मगहर वही स्थान है जहां संत कबीर दास ने अपना देह त्यागा था। इसका नाम मगहर इसलिए पड़ा (Meaning of Maghar) क्यूंकि पन्द्रवीं शताब्दी में यहाँ बौद्ध-भिक्षुआ का बहुत आना – जाना होता था, और उस दौर में यहाँ पर मार्ग में बहुत लूटेरे भी बड़ी संख्या में होते थे , इस कारण से इस स्थान का नाम ‘मार्ग’ ‘हर’ अर्थात ‘मार्ग में चोरी होना’ जिस कारण से इस स्थान का नाम कालांतर में ‘मगहर’ Maghar पड़ गया। कई विद्वानों का ऐसा मानना है की उस जमाने में यहाँ के कुछ गणमान्य लोगो ने हिन्दुओ को ‘काशी’ के प्रति अधिक जागरूक और आस्थवान बनाने के लिए ये प्रचारित किया की ‘ जो काशी में मरेगा वो स्वर्ग जायेगा और जो मगहर मरेगा वो नरक जायेगा ‘। इसके बाद से ये बात जगह-जगह फ़ैल गयी तो लोग काशी आकर अपना देह त्यागने लगे। एक प्रचलित कहानी के अनुसार – कबीर के मगहर आने से पहले यहाँ पर कुछ पुराने संतो का आना होता है, और वो इसी दौरान पीने के लिए पानी मांगते है लेकिन उन्हें पानी के स्थान पर धूल और मिट्टी मिलती है जिसके बाद वो इस स्थान को श्रापित करके कहते है की यहाँ पर सूखा रहेगा और लोग पानी के लिए बहुत परेशान रहेंगे। ऐसा कहने के बाद वो संत वहां से चले जाते है और कुछ समय पश्चात होता भी कुछ ऐसा ही है। वह पर बहुत सूखा पड़ता है जिसके बाद वह के राजा बहुत परेशान हो जाते है और नगर के सभी गणमान्य सदस्यों और सांतो को बैठक में आमनत्रित कर इस समस्या का समाधान बताने के लिए कहते है, लेकिन इतनी बड़ी बैठक होने के बावजूद कोई उपाय न मिलता देख राजा को कोई सलाह देता है की वो ‘संत कबीर दास’ से बात करे, वो शायद इस विषय में अवश्य कुछ कर पाएंगे। राजा कबीर के पास जाते है और उन्हें मगहर में आने के लिए कहते है। कबीर राजा की बात मानकर मगहर जाने के लिए तैयार हो जाते है लेकिन तभी जब वो काशी छोड़कर मगहर जा रहे होते है, तब लोग उन्हें कहते है मगहर में जो भी अपना देह त्यागता है वो नर्क को जाता है इस पर कबीर ये दोहा कहते है –
‘ क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा ’
(काशी हो या मगहर का ऊसर मेरे लिए दोनों एक जैसे है, मेरे ह्रदय में राम बसते है, अगर कबीर काशी में देह त्याग कर के मुक्ति पा ले तो इसमें राम का क्या एहसान)
ऐसा कहा जाता है की जब कबीर मगहर में रहने लगे तो वहां सूखे की समस्या समाप्त हो गयी और यहाँ से एक नदी निकलती है जिसका नाम आमी नदी (Aami river) है जो आज तक नहीं सुखी है। आमी नदी के साथ कई कहानिया जुडी हुई हैं। जैसे की कहा जाता है की इस इलाके में सूखा पड़ा और कबीर के द्वारा तपस्या करने पर आमी नदी अपनी धार मोड़कर उस इलाके में आईं और वहां पर पानी की समस्या समाप्त हो गई। इसी नदी के किनारे ‘कबीरधुनि’ kabirdhuni नामक स्थान है जहां पर कबीर रहते थे।
कबीर का अंतिम समय – Kabir left his body in Maghar
कबीर ने अपना शरीर मगहर में त्यागा। एक प्रचलित किंदवंती के अनुसार जब कबीर अपने अंतिम क्षणों में थे तब वहां के राजा और अन्य लोग उनसे मिलने आये। कबीर ने उन्हें कहा की वो ध्यान में जा रहे है। ऐसा कहकर कबीर अपनी गुफा में जाकर ध्यान में बैठ गए। साथ ही ध्यान में जाने से पहले कबीर ने सबको कह दिया था की अगर अंदर से किसी भी तरह की आवाज़ आना बंद हो जाए तो वो लोग दरवाजा खोल सकते है, लेकिन जबतक आवाज़ आती रहे तब तक उन्हें इंतज़ार करना है। लोगो ने ठीक किया भी ऐसा ही जब आवाज़ आनी बंद हो गयी तो वो गुफा में उन्हें देखने गए। कबीर के देह त्यागने के बाद हिन्दुओ और मुसलमानो में झगड़ा होने लगा किसका अधिकार उनके उनपर अधिक है। झगड़ा सुलझता न देख दोनों ने कबीर की याद में अपने-अपने तरीके से उनके लिए मंदिर और मजार बना दी। आज मगहर में जहां एक ओर कबीर का मंदिर है तो वही दूसरी और कबीर का मजार देखने को मिलता है। कबीर के इस परिनिर्वाण स्थल पर दर्शन करने हर साल हज़ारो लोग आते है। कई बार इस स्थल को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल में बदलने की बात कही गई है लेकिन धरातल पर अभी उतनी तरक्की देखने को नहीं मिली है।
कबीर दास के नाम पर देश में कई सारे पंथ चल पड़े, लेकिन कबीर द्वारा दी गयी शिक्षाओं को वो अपने अनुसार परिभाषित करते है। बात चाहे कुछ भी हो किन्तु कबीर हमेशा से इन कर्मकांडो का विरोध करते रहे। बढ़ते असामनता और कट्टरता को देखते हुए अगर कबीर आज होते तो जरूर ये कहते – ‘मोको कहां ढूढ़ें बंदे, मैं तो तेरे पास में. न मैं मंदिर, न मैं मस्जिद, न काबे कैलास में…’