संत कबीर दास के 10 प्रसिद्ध दोहे, जो सिखाते है ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा

संत कबीर दास Sant Kabir दास भारत के महानतम और सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी कवियो में से एक है। कबीर दास की कृतियाँ पढ़कर ज्ञान की एक अद्भुत अनुभूति होती है। कबीर दास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामान्य जनमानस की चेतना को झकझोरने का काम किया उन्होंने उस दौर में वो सब लिख दिया जिसे कहने की हिम्मत शायद ही कोई कर पाता। कबीर दास अपने आप में ही एक परिपूर्ण व्यक्ति थे जिन्होंने जीवन के अनसुलझे रहस्यों को बड़ी बेबाकी से कागज़ पर उतरने का काम किया। कबीर दास अगर न होते तो शायद ही हम कभी ये जान पाते की आडम्बर और सादगी में मौलिक अंतर क्या है। कबीर दास ने अपनी रचनाओं में सारी रूढ़िवादी धारणाओं पर चोट की जिन्हे उस दौर में सामान्य माना जाता था। कबीर दास आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व हुए फिर भी उनके द्वारा कही गयी बातें उस दौर में भी सत्य थी और आज भी सत्य है। हमें ये समझना होगा की कबीर क्यों सामाजिक रूढ़िवादी रवैये और आडम्बरो पर चोट करते थे इसके पीछे मुख्य उद्देश्य उनका सामाजिक और आर्थिक परिवेश रहा हो जिसने उन्हें मजबूर किया की वो उन दिखावे भरी चीज़ो पर का खंडन करके वास्विकता को जग के सामने लाये। कबीर ने अपने स्तर वो हर कोशिश की कि, वो लोगो को जनजागृति कि तरफ लेकर जाए और उन्हें वास्तविकता का बोध करवाए।

कबीर ने साफ़ साफ़ कहा कि हमें उस ईश्वर में एकाकार होने के लिए सामाजिक आडम्बर करने कि आवश्यकता नहीं है, यदि हमारी आस्था गहरी और साफ़ हो तो हम यु ही ईश्वर कि भक्ति कर सकते है। इस बात कि तस्दीक उनकी ये कृति करती है – ” मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मै तो तेरे पास में —- खोजि होए तुरत मिल जाऊं इक पल की तालास में ” कबीर इस पंक्ति में कह रहे है कि हम अगर भगवन कि सच्ची पूजा करना चाहते है तो हमें इसके लिए सामाजिक आडम्बर करने कि आवशयकता नहीं है, हम बिना आडम्बर भी अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते है।

भारतीय इतिहास में कबीर जैसा आलोचना करने वाला शायद ही कोई हुआ और आगे होने कि शायद उम्मीद भी नहीं है। कबीर एक बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्ति थे जो समाज और राजनीती के ढोंग को भली भांति समझते थे इसलिए उनकी रचनाओं में ये साफ़ साफ़ झलकता था। आज हम आपको कबीर दास Kabir das द्वारा लिखी गया कुछ महत्वपूर्ण और motivate करने वाले कुछ दोहो Dohe से रूबरू करवाएंगे। जिन्हे पढ़कर आपको बेहद ख़ुशी होगी और आप इन्हे अपनी ज़िन्दगी में अपना कर खुद को बुरे समय में संभल पाएंगे।

कबीर दस के टॉप 10 दोहे, जो सिखाते है ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा – हिंदी में ।  Top 10 Kabir das dohe, which helps to stay positive in bad time – in Hindi

Table of Contents

1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

Kabir Das

Bura jo dekhan me chala, bura na miliya koy,
jo dil khoa aapna, mujhse bura na koy

मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी और लालची प्रकृति का होता है वह हमेशा दुसरो में बुराई देखता है कभी भी खुद के भीतर झाँक कर नहीं देखता कि उसके अंदर कितनी बुराई भरी है वो हमेशा दूसरो को देख देख कर जलता रहता है जिस कारण वो खुद तो परेशान रहता है साथ ही दूसरो को भी परेशान रखता है। ऐसी अवस्था में आज हर कोई है जो दुसरो से खुद कि तुलना करते है और द्वेष कि भावना रख कर हर किसी में बुराई खोजते है। कबीर इस दोहे dohe के माध्यम से ये समझाना चाहते है कि अगर आप दुसरो कि बुराई देखने कि वजह अपने अंदर कि बुराई देखोगे तो आप पाओगे कि आप से बुरा इस जगत में कोई नहीं है क्यूंकि कोई भी दूसरा व्यक्ति आपको आपसे अच्छा नहीं जानता।

2. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

Kabir Das

Mala pherat jug bhaya, phira na man ka pher,
kar ka manka daar de, man ka manka pher

कबीर आडम्बरो पर चोट करने वाले कवी थे उन्होंने उन लोगो को इस दोहे के माध्यम से आड़े हाथों लिया है जो दिखावे कि दुनिया में जीते है और सिर्फ और सिर्फ दिखावे पर ही अपनी रोटियां सेंकते है उनके मन में कुछ और और जुबां पर कुछ और होता है। कबीर इस दोहे में कहते है माला फेरने से कुछ नहीं होगा जब तक कि मन को पवित्र न किया जाए, यदि सच्ची आराधना करनी है तो मन को भी बदलना होगा। kabir ऐसे लोगो को सलाह देते है कि मोतियों कि माला फेरने कि वजाये मन कि माला फेरना यानि बदलना होगा तभी पूरी शांति मिलेगी।

3. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

Kabir Das

Jaati na puchho sadhu ki , puchh lijiye gyan,
mol karo talvar ka, padi rehen do myaan

कबीर दास जी इस पंक्ति में माध्यम से कहते है कि साधु हर प्रकार के सामाजिक बंधनो से मुक्त होता है और उसे किसी भी प्रकार का मोह नहीं वो अपने जीवन को पहले ही सीमित कर चुका है इसलिए उसके पास केवल तपस्या के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही है, इसलिए कभी भी किसी साधु से उसकी जात-पात पूछे बिना उसका सत्कार किया जाना चाहिए, उसके ज्ञान का मोल करना चाहिए। साथ ही जिस प्रकार से एक तलवार का मोल उसके धार के आधार पर किया जाता है न कि उसके म्यान पर, ठीक उसी प्रकार एक साधु को भी उसके ज्ञान के आधार पर मोल करना चाहिए न कि उसके जात के आधार पर।

4. दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

Kabir Das

Dos paraye dekhi kari, chala hasant hasant,
apne yaad na aavai, jinka aadi na ant

इंसान कि आदत है कि वो दुसरो कि बुराइयों को देखकर उनके दोषो पर हँसता है वो कभी भी अपने अंदर झांक कर नहीं देखता कि उसके भीतर कितनी बुराई है जिसका न तो आदि है और न ही अंत। अर्थात उसके भीतर अनंत बुराई है जिसकी गणना करनी भी मुश्किल है फिर भी वो दुसरो को बुराइओं और दोषो पर प्रसन्न होता है। कबीर ने इस दोहे के माध्यम से उन ऐसे लोगो को आड़े हाथो लिया है जो दुसरो कमियों पर हँसते है।

5. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

Kabir Das

Jin khoja tin paiya , gahre paani paith,
me bapura budan dara, raha kinare baith

बहुत से लोग ऐसे होते है जो जीवन में मेहनत नहीं करना चाहते और डर के कारण हमेशा से जोखिम लेने से बचते है। इस दुनिया में ऐसे लोगो कि बिलकुल भी कमी नहीं Kabir Das ने ऐसे लोगो के लिए ही इस दोहे को कहा है। इसका अर्थ है , जिस प्रकार से एक मेहनत करने वाला गोताखोर पानी में उतरता है तो वह कुछ न कुछ लेकर ही आता है, लेकिन बहुत से लोग ऐसे होते है जो पानी में उतरते ही नहीं है और डर के मारे किनारे पर ही बैठे रहते है। जिस कारण उनके हाथ कुछ नहीं लगता।

6. कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्‍ती, न काहू से बैर।

Kabir Das

Kabira khada bazaar me mange sabki khair,
na kahu se dosti, na kahu se bair

इस पंक्ति के माध्यम से कबीर दास जी कहते है कि इस संसार में आके वह सबकी भलाई चाहते है। वो कहते है कि यदि कोई दोस्त न हो तो किसी से दुश्मनी भी न हो। कबीर के इन पंक्तियों के मर्म को टटोलने का प्रयत्न किया जायेंगे तो पाएंगे कि कबीर समाज का भला चाहते है, किसी भी प्रकार का किसी से बैर या द्वेष रखे बिना जीवन को आनंदमयी रखना चाहते है।

7. निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

Kabir Das

Nindak niyare rakhiye, angaan kuti chhavay,
bin paani, sabun bina, nirmal kare subhay

हर व्यक्ति में एक सामान्य स्वाभाव जो देखने को मिलता है वो है उसके आलोचना से डरना। लोग आलोचनाओं को बिलकुल पसंद नहीं करते, वो चाहते है कि हर कोई उनसे बस अच्छी – अच्छी बातें करे जिसमे उनकी अच्छाई का जिक्र हो। कबीर कहते कि जो कोई भी आपकी बुराई करे उनको हमेशा अपने पास रखिये वो आपको आपकी कमियां बताएँगे और बिना साबुन, पानी के आपकी कमियां बता कर आपके स्वभाव को साफ़ करने का काम करेंगे।

8. दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

Kabir Das

Durlabh manus janm hai, deh na barambar,
taruvar jyo patta jhade bahuri na lage dar

कबीर दास जी कहते है इस जगत में मनुष्य जन्म बहुत ही कठिन से मिलता है, बहुत जतन करने के बाद एक व्यक्ति मनुष्य जन्म पाता है। कबीर आगे कहते है कि जैसे कोई पत्ता वृक्ष से झाड़ कर निचे गिर जाए तो वो वापिस से डाल पर नहीं लग सकता है ठीक उसी प्रकार यह मानव शरीर भी बार बार नहीं मिलता। इसलिए भाग्यशाली है वो लोग जो मानव के रूप में अपना अस्तित्व बनाये हुए है।

9. हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास,
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।

Kabir Das

Haad jale jyu laakdi, kes jare jyu ghas,
sab tan jalta dekhi kari, bhaya kabir udaas

इस दोहे के द्वारा कबीर दास जी ने मृत्यु के बारे अवगत करवाया। जीवन को एक न एक दिन तो समाप्त होना ही है फिर आडम्बर और स्वार्थ क्यों ? वो कहते है यह नश्वर शरीर आखिरी के समय में लकड़ी कि तरह जलकर ख़ाक हो जाता है। इस पूरे दृश्य को देख कर कबीर का मन उदास हो जाता है।

10. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

Kabir Das

Dhire dhire re mana, dhire sab kuch hoy,
maali sinche sau ghada ritu aaye phal hoy

धैर्य अपने आप में एक बहुत बड़ा शब्द है, यदि जीवन में धैर्य न हो तो मनुष्य जीवन कठिन हो जायेगा क्यूंकि जिस काम को जिस समय पर होना है वो तब ही होगा अगर कोई बहुत अधिक मेहनत करके सोचेगा कि आज ही सारा फल ले लेंगे तो ये संभव नहीं, रोज थोड़ा थोड़ा मेहनत करनी होती है अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए। इस दोहे में कबीर दास जी उदाहरण के माध्यम से समझाते है कि अगर कोई माली एक ही दिन में सौ घड़ा पानी डालकर फल पाने कि इच्छा रखेगा तो वह गलत है, ऐसा करने पर उसे कुछ लाभ नहीं होगा उसे ऋतू आने का इंतज़ार तो करना ही होगा तभी उसमे फल लगेंगे।

ये थे कबीर दास के कुछ चुनिंदा दोहे, वैसे तो उनके बहुत सारे दोहे है लेकिन इसमें हमने उनके कुछ ही दोहो को शामिल किया है। उम्मीद करते इन्हे पढ़कर आप थोड़ा पॉजिटिव फील करेंगे और कुछ नयी जानकारी पाएंगे।

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